ईशान्यकी
सैकडों
बोलियोंकी
गरिमाके
लिये
इस
घटनाक्रमका
आरंभ
कुछ
वर्ष
पूर्व
या
कुछ
सदियों
पूर्वसे
भी
किया
जा
सकता
है।
लेकिन
आरंभ
करती
हूँ
फरवरी
माहके
किसी
दिनसे,
जब
मैंने
डिब्रूगड
युनिवर्सिटीके
लिये
एक
संकल्पना
बनाकर
भेजी।
विषय
था
–
असमिया
लिपीको
बचाना
–
कम्प्यूटरपर
असमिया
लिपीसे
ही
आलेख
लिखना।
पुणेसे
सीधे
दिब्रूगड?
इसका
कारण
था।
मुंबईकी
सुश्री
सविता
औऱ
श्री
दिलीपजीने
मुझे
कईबार
ये
कहते
सुना
था
कि
र
और
R
अलग
हैं,
अ
और
A
भी
अलग
हैं।
इसलिये
यदि
मुझे
कम्प्यूटपर
राम शब्दको
टंकित
करना
हैं
तो
मुझे
र द्योतक
कुञ्जी
खोजनी
चाहिये
न
कि
R
की।
पर
वे
इसे
समझ
नही
पाते
थे।
उनकी
समझ
कहती
थी
कि
R
की
कुञ्जी
ही
तो
र
की
भी
कुञ्जी
है
और
A
की
कुञ्जी
ही
तो
अ
की
भी
है।
फिर
राम
लिखने
के
लिये
R,A,M
क्यों
नही
लिखना
चाहिये?
मेरा
उत्तर
होता
था
कि
आपके
कम्प्यूटरमें
अंगरेजीके
R,A,Mकी
बजाए
अलग
प्रकारसे
लेखनके लिये
र,
आकार,
तथा
म
की कुञ्जियाँ
बनी
हुई
हैं
औऱ
उनकी
जगहें
ऐसी
बनी
हैं
कि
उनको
स्मरण
रखनेका
तरीका
अत्यंत
सरलतम
है।
वह तरीका भारतीय वर्णमाला-अनुसारी
है। यदि
आपने
उन्हें
सीखकर
उन्हींका
प्रयोग
आरंभ
नही
किया
तो
एक
दिन
आप
अपनी
पूरी
वर्णमालाको
भूलनेवाले
हैं।
इसी
कारण
राम
लिखने
के
लिये
र
की
कुञ्जी
खोजनी
चाहिये
न
कि
R
की।
पर
बात
उन्हें
फिर
भी
समझ
नही
आती
थी।
आखिरकार
एक
दिन
सविता
मुझे
आग्रहपूर्वक
अपनी
संस्थामे
ले
गई,
कम्प्यूटर
सेक्शनके
लोगोंको
भी
बुलाया
और
कहा
“दिखाइये”।
मैने
५
मिनिटमें
ही
जो
वर्णमाला-आधारित
INSCRIPT
कुञ्जीपटल
समझाया
वह
उनके
लिये
नया
और
किसी
जादू
जैसा
था।
दो-तीन
बार
जादू
देखकर
और
फिर
खुद
भी
कर
पानेपर
सभी
लोग
सुखद-आश्चर्यमें
पड
गये।
तभी
मैंने
कहा
कि
अब
आप
किसी
भी
कन्नड,
बंगाली,
गुजराती
भाषीसे
कह
सकतें
है-
आओ,
तुम्हें
तुम्हारी
भाषा
कम्प्यूटरपर
लिखनेकी
सरलतम
विधी
बताऊँ
औऱ
यही
पटल
उनकी
लिपियोंमे
भी
लागू
होगा।
सविताके
लिये
बडा
आश्चर्य
यह
था
कि
अब
सविता
लिखनेके
लिये
एस,
ए,
वी,
इस
प्रकार
सोचनेकी
गरज
नही
पडेगी
–
सीधे
स,
व,
इकार….
इस
प्रकार
लिखा
जा
सकेगा।
देवनागरीके
हर
अक्षरके
लिये
पहले
अँगरेजी
कॉरस्पॉण्डिंग
अक्षरके
चिंतनकी
आवश्यकताको
अलविदा।
दिलीपजी
दिब्रूगड
युनिवर्सिटी
के
बोर्ड
मेंबर
हैं।
वह
बोले
क्या
आप
हमारे
असमिया
छात्रोंको
कम्प्यूटर
पर
असमिया
लिपी
सिखा
सकती
हैं
?
“ बिलकुल
”
दिलीपजी
कहा
कि
वे
आभारी
होंगे
यदि
मैं
इसी
पद्धतिसे
असमिया
सिखानेके
लिये
कोई
टिप्पणी
लिखूँ।
जब
मैंने
उन्हें
टिप्पणी
दी
तो
दिलीपजीने
कहा
–
यह
आप
ही
वहाँ
चलकर
समझाइये।
फिर
उन्होंने
इसे
दिब्रूगड
युनिवर्सिटीको
भेजा
और
अपनी
ओरसे
जोड
दिया
कि
आसाम
क्षेत्रकी
कई
अन्यान्य
क्षेत्रीय
बोलीभाषाओंके
लिये
भी
यही
तरीका
उपयुक्त
रहेगा
क्योंकि
अंग्रेजीमे
स्पेलिंग
बनाकर
लिख
पाना
और
अंग्रेजीमें
लिखे
स्पेलिंगसे
दूर
जगह बैठे व्यक्तिद्वारा
सही
उच्चारणका
अनुमान
लगा
पाना
दोनोंही
कठिन
हैं,
जबकि
भारतीय
लिपियोंमें
लिखा
गया
पूर्णतः
उच्चारण-आधारित
होनेके
कारण
दूर
बैठे
व्यक्तिको
पढनेमें
कोई
कठिनाई
नही
होती।
और
असमिया
या
हिंदीका
तो
कहना
ही
क्या
–
ये
दोनों
समृद्ध
भाषाएँ
आसाममें
खूब
चलती
हैं।
इसे
सीखकर
सभी
विद्यार्थियोंका
बहुत
फायदा
होगा।
अतएव
आरंभिक
तौरपर
दिब्रूगड
युनिवर्सिटीमें
मेरा
लेक्चर–कम–हॅण्डस्आन–ट्रेनिंगका
सेशन
रखवाया
जाय।
दिब्रूगड
युनिवर्सिटीने
भी
इसे
स्वीकार
करते
हुए
इस
व्याख्यानका
कार्यक्रम
नियत
किया।
शीघ्रही
मुझे
एक
ई-मेल
भेजकर
रजिस्ट्रार
डा.
दत्ताने
बताया
कि
मेरे
प्रस्तावके
अनुसार
उनके
विश्वविद्यालयमें
मेरा
दो
घंटेका
एक
व्याख्यान
व
प्रशिक्षण
आयोजित
कर
रहे
हैं।
जब
यह
कार्यक्रम
तय
हो
चुका
तो
सविताने
सुझाव
दिया
कि
इसी
प्रकारका
व्याख्यान
मुझे
बोडो
युनिवर्सिटीमें
भी
देना
चाहिये,
क्योंकि
बोडो
जनजातिने
अपनी
बोलीको
देवनागरीमें
लिखनेका
चुनाव
किया
है,
लेकिन
इस
पद्धतिकी
अनभिज्ञता
वहाँ
भी
है।
अतएव
बोडो
विद्यार्थीयोंको
सुलभतासे
कम्प्यूटरपर
हिंदी
लेखन
सिखाना
उनके
भविष्यकालीन
व्यवसायों
या
नौकरीके
लिये
भी
उपयुक्त
होगा।
मुझे
यह
भी
याद
आया
कि
पिछले
वर्ष
अरूणाचलमें
विवेकानन्द
केंद्रसे
भी
उनके
स्कूली
शिक्षकों
व
विद्यार्थीयोंके
लिये
ऐसेही
हिंदी
प्रशिक्षणकी
बात
चली
थी
और
फिर
रुक
गई
थी।
मैंने
झटपट
इटानगरमें
रुपेशजीको
ई-मेल
लिखा
–
बतायें
कि
क्या
क्या
संभावनाएँ
हैं
?
दिब्रूगड
युनिवर्सिटीके
व्याख्यानका
दिन
२७
मार्च
तय
हुआ
था।
रजिस्ट्रार
श्री
दत्ताने
गुवाहाटी
युनिवर्सिटीके
लिये
बात
करने
का
आश्वासन
दिया
और
गुवाहाटी
युनिवर्सिटीमें
रजिस्ट्रार
तथा
कम्प्यूटर
विभागको
पत्र
भेजे।
मैंने
भी
गुवाहाटी
तथा
बोडो
युनिवर्सिटीकी
संभावना
सोचकर
कुछ
पत्र
लिखे
और
कुल
१०
दिन
आसाम
क्षेत्रमें
रुकनेकी
योजना
बनाई।
गुवाहाटी
स्थित
मेरे
एक
पुराने
सहयोगी
देवजित
भुइयाँने
अपनी
संस्थाके
दो
कॉलेजोंमें
कार्यक्रम
तय
किया।
गुवाहाटीमें
ही
विवेकानन्द
सेंटर
फॉर
कल्चरकी
एक
कार्यकर्त्री
मीरा
कुलकर्णीने
भी
केंद्रमें
एक
कार्यक्रम
आयोजित
करनेका
आश्वासन
दिया।
प्रत्यक्षतः
अरुणाचलके
स्कूलोंमे
या
युनिवर्सिटीमें
कोई
कार्यक्रम
नही
हो
पाया
क्योंकि
हमारे
जानेके
दिनतक
वहाँकी सभी शैक्षणिक संस्थाओंमें
छुट्टियाँ
आरंभ
हो
गई
थीं।
गुवाहाटी
युनिवर्सिटीमें
भी
कोई
अडचन
आई
लेकिन
मीराने
आयआयटी
गुवाहाटीके
सेंटर
फॉर
एनर्जी
स्टडीजमें
एक
कार्यक्रम
निश्चित
किया।
मुंबई
आकाशवाणीके
श्री
आनंद
सिंहने
डिब्रूगड
आकाशवाणीके
एक
अधिकारीसे
मुलाकात
तय
करवा
दी।
माजुली
मठसे
जुडे
मेरे परिचित
श्री
डम्बरु
आजकल
सिमलामें
साहित्य-शोधपर
लगे
हैं,
उनका
आग्रह
रहा
कि
मैं
माजुलीके
मठाधिकारी
श्री
पीताम्बरजीसे
भी
अवश्य
मिलूँ
जो
उन
दिनों
टोएक गाँवमें अपने छोटे
मठमें
ठहरे
थे।
यह जोरहाट जिलेमें और
दिब्रूगडसे
मात्र
२
घंटेकी
दूरीपर
था।
तभी पुणेके ही मेरे अन्य
परिचितने बताया कि उनके
मित्रपरिवारसे श्री वैभव
निंबाळकर आईपीएस जोरहाटमें
एसएसपी हैं और मुझे उनसे भी
मिलना चाहिये।
इस
प्रकार
कार्यक्रम
बनते
चले
गये।
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दिनांक
२६
मार्च
२०१८,
दोपहर
१२ बजेके आसपास मैं
पुणेसे
तथा
दिलीपजी
मुंबईसे
डिब्रूगड
पहुँचे।
इस बीच युनिवर्सिटीके कम्प्यूटर
विभागके असोसिएट प्रो.
श्री
रिजवानका फोन आया था कि वे ही
हमारे कार्यक्रमका संयोजन
कर रहे हैं।
मैंने
उनसे
आग्रह
किया
था
कि
हवाई
अड्डेपर
हमें
लिवाने
किसी
अधिकारीके बजाए किसी
विद्यार्थीको
भेजें।
इससे
मेरा
लाभ
ये
होता
है
कि
अनायास
ही
युवापीढीके
साथ
अप-टू-डेट
हुआ
जाता
है।
हमे
लिवाने विभूति
नामक
एक
एमसीएका छात्र
आ
गया
था।
मेरा लेक्चर २७ की दोपहरमें
था। इस कारण पिताम्बरजीने
आग्रह किया था कि मैं २६ को ही
टोएक मठमें जाऊँ और वहाँ रहकर
२७ की सुबह वापस डिब्रूगड
समयपर पहुँच जाऊँ। इसके लिये
गाडीकी व्यवस्था करनेका जिम्मा
रिजवानने लिया था।
रास्तेमें
विभूतिसे हमारी बातें चल रही
थीं। पूरा वातावरण ऐसा मानों
हम महाराष्ट्रके ही कोंकण
प्रदेशमें हों। वही नारियल,
बाँस,
उडहुलके
फूल वगैरा। लेकिन बीच बीचमें
लम्बे पट्टे दीख जाते थे
चायबागानोंके। ऑइल कंपनियोंके
कारण दिब्रूगडमें कई छोटे-बडे
उद्योग भी हैं। अन्य कई राज्योंकी
तुलनामें असममें शिक्षाका
स्तर अधिक अच्छा है,
स्त्री-पुरुष
समानता है और पंद्रहवीं
सदिके संत श्रीमन्त
शंकरदेवजीके समाजसुधारक
कार्यक्रमोंका बडा प्रभाव
है। माजुली मठ भी उसी परंपरामें
है। विभूतिने
बताया कि युनिवर्सिटी पहुँचकर
मुझे ४ बजे टोएकके लिये रवाना
होना है। बातों बातोंमें
उसने
कहा
कि वह भी जोरहाट निवासी ही है
जो केवल स्नातकोत्तर पढाईके
लिये डिब्रूगढ आया है। माँ-पिताजी
दिब्रूगडमें हैं। मैंने उसे
प्रस्ताव दिया --
यदि
वह जोरहाट जाना चाहे तो मेरे
साथ आ सकता है --
रिजवान
सरसे अनुमति लेनेका दायित्व
मेरा। वह भी खुशी खुशी तैयार
हो गया।
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